Board Paper of Class 10 2004 Hindi Delhi(SET 3) - Solutions
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।
- Question 1
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
पाठको! उस सुंदर मक़बरे का वर्णन पार्थिव जिह्वा भी नहीं कर सकती, फिर इस बेचारी जड़ लेखनी का क्या? अनेक शताब्दियाँ बीत गईं, भारत में अनेकानेक साम्राज्यों का उत्थान और पतन हुआ। भारत की वह सुंदर कला तथा उस महान् समाधि के वे अज्ञात निर्माणकर्ता भी समय के अनन्त गर्भ में न जाने कहाँ विलीन हो गए; परन्तु आज भी वह मक़बरा खड़ा हुआ अपने सौंदर्य से संसार को लुभा रहा है। समय तो उसके पास फटकने भी नहीं पाता कि उसकी नूतनता को हर सके, और मनुष्य... बेचारा मर्त्य, वह तो उस मक़बरे के तले बैठा सिर धुनता रहा है। यह मक़बरा शाहजहाँ की उस महान साधना का, अपनी प्रेमिका के प्रति उस अनन्य तथा अगाध प्रेम का फल है। वह कितना सुंदर है? वह कितना करुणोत्पादक है? आँखें ही उसकी सुंदरता को देख सकती हैं, हृदय ही उसकी अनुपम सुकोमल करुणा का अनुभव कर सकता है। संसार उसकी सुंदरता को देखकर स्तब्ध है, सुखी मानव जीवन के इस करुणाजनक अंत को देखकर क्षुब्ध है। शाहजहाँ ने अपनी मृत प्रियतमा की समाधि पर अपने प्रेम की अंजलि अर्पण की, तथा भारत ने अपने महान शिल्पकारों और चतुर कारीगरों के हाथों शुद्ध प्रेम की उस अनुपम और अद्वितीय समाधि का निर्माण करवाकर पवित्र प्रेम की वेदी पर जो अपूर्व श्रद्धांजलि अर्पित की उसका साथी इस भूतल पर खोजे नहीं मिलता।
बरसों में परिश्रम के बाद अंत में मुमताज़ का वह मक़बरा पूर्ण हुआ। शाहजहाँ की वर्षों की साध पूरी हुई। एक महान् यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। इस मक़बरे के पूरे होने पर जब शाहजहाँ बड़े समारोह के साथ उसे देखने गया होगा, आगरे के लिए, वह दिन कितना गौरवपूर्ण हुआ होगा। उस दिन का – भारत की ही नहीं संसार की शिल्पकला के इतिहास के उस महान दिवस का वर्णन इतिहासकारों ने कहीं भी नहीं किया है। कितने सहस्त्र नर-नारी आबाल वृद्ध उस दिन उस अपूर्व मक़बरे के – संसार की उस महान अनुपम कृति के दर्शनार्थ एकत्रित हुए होंगे? उस दिन मक़बरे को देखकर भिन्न-भिन्न दर्शकों के हृदयों में कितने विभिन्न भाव उत्पन्न हुए होंगे? किसी को इस महान् कृति की पूर्ति पर हर्ष हुआ होगा, किसी ने यह देखकर गौरव का अनुभव किया होगा कि उनके देश में एक ऐसी वस्तु का निर्माण हुआ है जिसकी तुलना करने के लिए संसार में कदाचित् ही दूसरी कोई वस्तु मिले; कई एक उस मक़बरे की छवि को देखकर मुग्ध हो गए होंगे; न जाने कितने चित्रकार उस सुंदर कृति को अंकित करने के लिए चित्रपट रंग की प्यालियाँ और तूतिकाएँ लिए दौड़ पड़े होंगे; न जाने कितने कवियों के मस्तिष्क में कैसी-कैसी अनोखी सूझें पैदा हुई होंगी।
परंतु सब दर्शकों में से एक दर्शक ऐसा भी था जिसके हृदय में भिन्न-भिन्न विपरीत भावों का घोर युद्ध भी हुआ था। दो आँखें ऐसी भी थीं, जो मक़बरे की उस बाह्य सुंदरता को चीरती हुई एकटक उस कब्र पर ठहरती थीं। वह दर्शक था शाहजहाँ, वे आँखे थीं मुमताज़ के प्रियतम की आँखें। जिस समय शाहजहाँ ने ताज के उस अद्वितीय दरवाज़े पर खड़े होकर उस समाधि को देखा होगा, उस समय उसके हृदय की क्या दशा हुई होगी, यह वर्णन करना अतीव कठिन है। उसके हृदय में शांति हुई होगी कि वह अपनी प्रियतमा के प्रति किए गए अपने प्रण को पूर्ण कर सका। उसको गौरव का अनुभव हो रहा होगा कि उसकी प्रियतमा की कब्र–अपनी जीवनसंगिनी की यादगार–ऐसी बनी कि उसका साथी शायद ही मिले। किंतु उस जीवित मुमताज़ के स्थान पर, अपनी जीवनसंगिनी की हड्डियों पर यह क़ब्र – वह क़ब्र कैसी ही सुंदर क्यों न हो – पाकर शाहजहाँ के हृदय में दहकती हुई चिरवियोग की अग्नि क्या शांत हुई होगी? क्या श्वेत सर्द पत्थर का वह सुंदर अनुपम मक़बरा मुमताज़ की मृत्यु के कारण हुई कमी को पूर्ण कर सकता था? मक़बरे को देखकर शाहजहाँ की आँखों के सम्मुख उसका सारा जीवन, जब मुमताज़ के साथ वह सुखपूर्वक रहता था, सिनेमा की फिल्म के समान दिखाई दिया होगा। प्रियतमा मुमताज़ की स्मृति पर पुन: आँसू ढलके होंगे, पुन: सुप्त स्मृतियाँ जग उठी होंगी और चोट खाए हुए उस हृदय के वे पुराने घाव फिर हरे हो गए होंगे।
(1) ताजमहल को देखकर मन में करुणा की अनुभूति क्यों होती है? (2)
(2) ताजमहल का निर्माण पूरा होने पर आगरा में किस प्रकार का वातावरण रहा होगा? (2)
(3) ताजमहल पूर्ण होने पर शाहजहाँ की मानसिक स्थिति कैसी रही होगी? (2)
(4) ताजमहल को प्रथम बार देखकर कवि और चित्रकारों के मन में क्या भाव उभरे होंगे? (2)
(5) इस अनुच्छेद का शीर्षक लिखिए। (2)
(6) 'क्षुब्ध' तथा 'श्रद्धांजलि' शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए। (2)
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- Question 2
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
चींटी को देखा? वह सरल, विरल, काली रेखा,
तम के तागे-सी जो हिल-डुल चलती लघुपद,
पल-पल मिल-जुल।
वह है पिपीलिका पाँति देखो ना, किस भान्ति।
काम करती वह सतत।
कन-कन करके चुनती अविरत।
गाय चराती, धूप खिलाती, बच्चों की निगरानी करती,
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना सँवारती,
घर, आँगन, जनपथ बुहारती।(1) इन पंक्तियों का उचित शीर्षक लिखिए। (1)
(2) चींटी कैसे चलती है? (1)
(3) शत्रु के प्रति चींटी का क्या व्यवहार होता है? (2)
(4) चींटियाँ क्या-क्या कार्य करती हैं? (2)
(5) इन पंक्तियों का मूल भाव क्या है? (2)
अथवा
रात यों कहने लगा मुझ से गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।(1) इन पंक्तियों का उचित शीर्षक लिखिए। (1)
(2) चाँद ने कवि से क्या और क्यों कहा? (2)
(3) 'तुझ-से पागलों' से क्या तात्पर्य है? (2)
(4) 'स्वप्नों पर सही करते' का भाव स्पष्ट कीजिए। (2)
(5) चाँद स्वयं को कितना पुराना बताता है? (1)
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