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क्रिया

क्रिया की परिभाषा

किसी कार्य के करने या होने के बोध को क्रिया कहते है। क्रिया का अर्थ है − कार्य। कार्य या तो किया जाता है या उसके होने का बोध (ज्ञान) होता है।

परिभाषा :- क्रिया से कार्य के करने या होने का बोध होता है;

जैसे -

(क) रूपा गाड़ी चलाती है।

(ख) राम मशीन चला रहा है।

(ग) गीता गाना गा रही है

(घ) श्याम खाना खा रहा है

(ङ) तुम घर जा रहे हो

उसी तरह क्रिया से किसी कार्य के करने या किसी स्थिति में होने का बोध होता है;

जैसे -

(क) यह रूमाल है।

(ख) श्यामा ने खाना खाया।

(ग) विनय रोज़ विद्यालय जाता है।

इन वाक्यों में -

(क) 'है' रूमाल की स्थिति दर्शाता है।

(ख) 'श्यामा' के खाना खाने का पता चलता है।

(ग) 'रोज़ विद्यालय जाता है' से 'विनय' के विद्यालय जाने का पता चलता है।

धातु :-

क्रिया का निर्माण कुछ मूल शब्दों में विकार होने से होता है, ऐसे शब्दों को धातु कहते हैं।; जैसे - चल, आ, खा, रख, बैठ, दौड़, रूक, कह।

आ - आता, आऊँगा, आईए आदि।

चल − चलना, चला, चलूँगा।

खा − खाना, खाया, खाऊँगा।

कह − कहना, कहा, कहूँगा।

जब क्रिया के धातु रूप में ना लगा दिया जाता है तो क्रिया का रूप सामान्य बन जाता है; जैसे -

धातु

सामान्य रूप

पढ़

पढ + ना

पढना

चल

चल + ना

चलना

हँस

हँस + ना

हँसना

कह

कह + ना

कहना

रो

रो + ना

रोना

भाग

भाग + ना

भागना

ये सब आदि क्रियापद हैं।

यदि हम इन क्रिया पदों के ना को हटा दें तो यह क्रिया का धातु रूप बन जाता है।

क्रिया के भेद :-

क्रिया के दो भेद होते हैं - अकर्मक क्रिया व सकर्मक क्रिया।

जो क्रिया शब्द कर्म के बिना वाक्य को पूरा बनाते हैं, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे - चलना, फिरना, हँसना, रोना, दौड़ना, मुस्कुराना आदि ये भी दो प्रकार की हैं प…

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